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सपनें - The Driver of Your Life

जो कुछ भी परिणाम है, उसकी पूरी जिम्मेदारी सपनों की है। अगर कुछ गलत हो रहा है, तो इसका अर्थ है कि हमने गलत सपनों के बीज बोये थे। इसलिए हमें बहुत सावधान रहना पड़ेगा तथा हमें जाँच पड़ताल करना पड़ेगा कि हम किन सपनों का सौदा कर रहे हैं। विशेष कर बच्चों के दिमाग में किन सपनों का बीज बो रहे हैं।


जब कहते हैं कि दुनिया एक माया है, छलावा है, धोखा है तो इसका अर्थ मात्र इतना है कि इस दुनिया में सपना ही फलता-फूलता है और विकसित होकर एक विराट जंगल जैसा हो जाता है। अर्थात जिस रूप में सपनों के बीज बोये जाते हैं, उसी रूप में परिणाम मिलते हैं। अगर हमने सही सपनों के बीज बोये, तो परिणाम सही मिलेगा और जीवन विकास की गति को प्राप्त होगा। दूसरी तरफ यदि हमने गलत सपनों के बीज बोये, तो परिणाम भी गलत मिलेगा और जीवन विनाश की गति को प्राप्त होगा।


हमारी कठिनाई यह है कि हमें बाहरी मुसीबत से तो भय लगता है, परन्तु सपनों से भय नहीं लगता। हमें लगता है कि ये तो सपने हैं ये हमारा क्या बिगाड़ सकते हैं, इनका तो कोई अस्तित्व ही नहीं है। उदाहरण के लिए - हम गाड़ी चलाते समय भी सपना देखते हैं या बोलकर व लिखकर सपनों की रचना करते हैं कि ‘सावधानी/नजर हटी-दुर्घटना घटी’। इसमें हमें कुछ गलत नहीं लगता। हमें लगता है कि हम एक सही सूचना को प्रसारित कर रहे हैं। जब परिणाम, असावधानी व दुर्घटना के रूप में होता है, तब भी हम यह नहीं सोचते हैं कि इसका संबंध ‘सावधानी/नजर हटी-दुर्घटना घटी’ से है।


परन्तु यदि आप ध्यानपूर्वक अपने जीवन को देखें, तो आपको ज्ञात होगा कि एक पानी पीने के छोटी घटना का क्रम निम्न प्रकार हैः- 1. पानी की आवश्यकता होना, 2. पानी के सपने का आना तथा 3. पानी की मांग का होना। दूसरा उदाहरण जो जीवन के विभिन्न मोड़ों (बचपन, जवानी व बुढ़ापा) से जुड़ा है, को लेते हैं। एक बच्चा किसी युवती को जिस नजर से देखता है, एक युवक किसी युवती को जिस नजर से देखता है तथा एक बुढ़ा किसी युवती को जिस नजर से देखता है; इन तीनों के दृष्टि में असमानता होगी, क्योंकि तीनों की आवश्यकतायें अलग-अलग हैं। अतः इनके अन्दर पैदा होने वाले सपने भी अलग- अलग होगें।


यही कारण है कि जिस समाज का नेतृत्व बुढ़े लोगों ने किया उस समाज के सपने भी बुढ़े जैसे हो गये तथा इन सपनों के चलते उस समाज के युवक भी, जवानी की आवश्यकता होते हुए भी बुढ़े जैसे सपने पालने लगे और उनकी शारिरीक क्षमता भी बुढ़ों जैसी ढ़ीली ढ़ाली हो गयी। दूसरी तरफ जिस समाज का नेतृत्व जवान लोगों ने किया, उस समाज के सपने भी जवान जैसे हो गये तथा इन सपनों के कारण, उस समाज के बुढ़े लोग भी जवानों जैसे सपने पालने लगे और उनकी शारीरिक क्षमता भी तरोताजा होने लगीं।


आप किसी भी व्यक्ति से पूछेंः- ‘क्या आज मानवीय मूल्यों का ह्रास हो रहा है या मानवता विकसित हो रही है?’ सबका जवाब पूरी निश्चितता के साथ है कि मानवीय मूल्यों का ह्रास हो रहा है। आप कहीं भी जायें आपको अधिकाधिक जवाब इसी प्रकार से मिलेगा। इसका अर्थ है कि हमारी समाज की दिशा गलत राह ले चुकी है। अर्थात् इसका सीधा अर्थ है कि हमारे पूर्वजों ने हमारे अन्दर गलत सपनों के बीज बोये हैं। यहाँ आपका सोचना एकदम सही है कि हमारे पूर्वजों को गलत सपने विरासत में मिले थे। अतः गलत सपने पालने का दोष न तो हमारा है न हमारे पूर्वजों का, क्योंकि यह हजारों वर्षों से हमारी परम्परा का हिस्सा बन चुका है। यही कारण है कि यहाँ गाँधीजी जैसे लोग सफल होते हैं और नेताजी व भगतसिंह जैसे लोग असफल हो जाते है। इसका जीता जागता उदाहरण आज की स्थिती एवं सैकड़ों वर्षों की गुलामी की दास्ता है।

आज हमारे समाज में सबसे ज्यादा उन नवयुवकों की कमी दिख रही है जो समाज को विकसित करने, समाजिक बुराइयों को मिटाने अथवा रचनात्मक शक्ति में अपने जीवन का सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए तैयार हों। आज का अधिकांश युवकों का सपना बुढ़ों जैसा है कि किसी प्रकार से जीवन गुजर जाये। इसके लिए वे दर-दर नौकरी के तलाश में लगे हैं। ध्यान से देखने पर ऐसा लगता है जैसे कोई पच्चीस वर्ष का बूढ़ा अपने जीवन रुपी बोझ को ढ़ोने के लिए एक सुरक्षा (निश्चिंतता) की मांग कर रहा है, जो नौकरी से ही प्राप्त हो सकती है।


परन्तु हमे कहीं न कहीं से शुरुआत करनी ही होगी, क्यो न आप से ही की जाये? अभी मैं आज आपसे बात कर रहा हूँ और मैं यह चाहता हूँ कि आप अपने सपनों के प्रति सावधान रहें तथा गलत सपनो की जगह सही सपनों का पालन-पोषण करना शुरु कर दें। इससे गलत सपने अपने आप धीरे-धीरे समाप्त हो जायेगें। जब हम झाड़ियों को सुन्दर बाग मे बदलना शुरु करते हैं तो धीरे-धीरे एक-एक करके शुरुआत होती है। याद रखे समाज का कहीं अलग से अस्तिव नही है। समाज व्यक्तियों के समूह का नाम है। यदि किसी समाज के सभी व्यक्ति सही सपने वाले होते हैं तो वह समाज बुद्विमानों का समाज हो जाता है।

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