सुफलता क्या है?
सुफलता आगे बढ़ने के सही दिशा का नाम है। सुफल शब्द से सुफलता बना है। सुफल दो शब्दों ‘सु$फल’ से मिलकर बना है। अतः सुफलता का अर्थ हुआ सही परिणाम देने वाला कार्य। पूरी भारतीय संस्कृति एवं आदि ग्रन्थ (जैसे-वेद, उपनिषद इत्यादि) सुफलता देने वाले हैं। एक छोटे से उदाहरण से भारतीय एंव पश्चिमी सभ्यता में अंतर स्पष्ट हो जायेगा।
संस्कृत भाषा में | अंग्रेजी भाषा में | |
मैं (I) | तृतीये पुरूष (Third Person) | प्रथम पुरूष (First Person) |
तुम (You) | द्वितीये पुरूष (Second Person) | द्वितीये पुरूष (Second Person) |
वह (He/She/It) | प्रथम पुरूष (First Person) | तृतीये पुरूष (Third Person) |
इस प्रकार से हम देखते हैं कि पश्चिम हमेशा अपने आप को प्रथम मानता रहा है। थोडी सी इ्र्रमानदारी, अगर आप सामने हैं तो आपके प्रति होगी तथा जो वहां नहीं हैं, उसके प्रति कोई ध्यान नहीं दिया जायेगा। दूसरी तरफ भारतीय संस्कृति में जो यहां उपस्थिति नहीं है, उसके प्रति सबसे ज्यादा ईमानदारी रखी जाती है। उसके बाद जो व्यक्ति सामने होगा उसके प्रति ईमानदारी होती है तथा अंत में अपने प्रति घ्यान दिया जाता है।
भारत की सबसे बडी समस्या है, कि एक तरफ जहां भारतीय संस्कृति को आगे बढाने वाले तथा अनपढ व गॅवार कहे जाने वाले लोग, अपने पूर्वजों का अनुसरण केवल भय तथा आदत के कारण कर रहे हैं। तो दूसरी तरफ शिक्षित समाज पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण केवल अपने क्षुद्र अंहकार (हीनता के भावना) को पूरा करने के लिए कर रहे हैं।
अब आप सोचिये कि ‘हम सब भारत भाग्य विधाता कैसे बनेंगे?’ भारत वर्ष में दोनों तरह के लोग नकलची बनते जा रहे हैं तथा दोनों की दिशा अलग-अलग है, जिससे टकराव भी उत्पन्न हो रहा है। उस टकराव में भारत माता अपनी आखों में आंसू भर के भारत भाग्य विधाताओं की तरफ चुप-चाप देख रही है।
यदि आज-कल के पढ़े-लिखे लोगों को पश्चिमी सभ्यता उतनी ही पसंद है तो उन्हें पश्चिम के विकास के जो मुख्य कारक रहे हैं, उनको अपने अन्दर पैदा करना चाहिए। यदि आप पिछले 200 वर्षों को देखेंगे तो पाऐंगे कि पश्चिम में अनेकों वैज्ञानिक पैदा हुए हैं। याद रखें गहराई से ही सच्चाई सामने आती है। जो ऊपर-ऊपर देखेगा वो केवल परमेश्वर कबीर साहेब के इस वाक्य का प्रमाण देगा-‘मन ना रंगाये, रंगाये योगी कपरा’। ये दोनों पर समान रूप से लागू होती है। क्योंकि भारत की संस्कृति की धरोहर को ढ़ोने वाले लोग भी अपनी बुद्धि का उपयोग करके गहरे (पानी पैठ) जाना नहीं चाहते हैं।
ऊपर हम वर्णन कर चुके हैं कि भारतीय संस्कृति का मूल स्वरूप सुफलता का रहा है। परंतु यह सोचना अति आवश्यक है, कि हम पिछले सैकड़ों वर्षों तक गुलाम क्यों रहे हैं? जहाँदुनिया की पहली भाषा, पहला धर्म, पहला ग्रन्थ, तथा पहला प्रजातंत्र था। वह देश सैकड़ों वर्षों तक गुलाम रहा, यह सबसे बड़ा आश्चर्य है।
याद रखें, "एक गुलाम के अन्दर कितने भी गुण क्यों न हो, परंतु एक स्वतंत्र व्यक्ति के जैसी उसके अंदर आत्मविश्वास नहीं हो सकता है।" उसको आनंद मात्र दूसरों को गुलाम बनाने में आयेगा। प्रमाण है कि भारत वर्ष में यही होता रहा है। हम किसी व्यक्ति के बारे में सबसे पहले ये जानने की जिज्ञासा रखते है की उसका धर्म क्या है? उसकी जाती का है? तथा ओ व्यक्ति खा का रहने वाला है?